भगवान ने कहा है कि, ‘आत्मज्ञान समझो।’ ‘आत्मज्ञान’ और ‘केवलज्ञान’ में बहुत ज़्यादा अंतर है ही नहीं। यदि ‘आत्मज्ञान’ को समझ लिया तो वह ‘कारण केवलज्ञान’ है और ‘केवलज्ञान’, ‘कार्य केवलज्ञान’ है!
परम पूज्य दादा भगवानचैतन्य अविनाशी है और अचेतन भी अविनाशी है, लेकिन चैतन्य को तत्त्व स्वरूप से जानना है और तत्त्व स्वरूप से ही अविनाशीपन को समझना है!
परम पूज्य दादा भगवानविनाशी चीज़ों की मुद्दत होती है, अविनाशी वस्तु की मुद्दत नहीं होती। विनाशी को विनाशी समझने वाला ‘अविनाशी’ होता है!
परम पूज्य दादा भगवाननिजी बात करना निंदा कहलाता है। बात को सामान्य रूप से समझना होता है। निंदा करना तो अधोगति में जाने की निशानी है।
परम पूज्य दादा भगवानहमारे विचार किसी से मिलते-जुलते हों तो वह बहुत जोखिम भरा है। विचार मिलते-जुलते हों ऐसा ज़रूरी नहीं है, समझ होनी चाहिए। विचार मोक्ष में नहीं ले जाते हैं, समझ मोक्ष में ले जाती है!
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