प्रत्येक काम का हेतु रहता है। यदि सेवा का हेतु होगा तो ‘बाय प्रोडक्ट’ में लक्ष्मी मिलेगी ही। हमें जिस विद्या की जानकारी है, उसका सेवा में उपयोग करना, वही हमारा हेतु होना चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवानलोगों पर जब कर्ज बहुत चढ़ जाए, तब पहले ऐसा लगता है कि चुकाना है फिर ऐसा लगता है कि क्या चुकाना? तो वह बिगड़ गया! भीतर से हस्ताक्षर नहीं करने हैं।
परम पूज्य दादा भगवानबाहर बिगड़ गया हो तो भले ही बिगड़ गया, लेकिन भीतर मत बिगड़ने देना। कर्ज चुकाने की सुविधा न हो तब भीतर साफ रखना कि देना ही है। यदि भीतर का बिगड़ने नहीं दिया तो कर्ज चुकाने का वक्त आ जाएगा।
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