माया यानी घोर अज्ञानता। अज्ञानता के कारण ये दुःख हैं। इस दुनिया में दुःख है ही नहीं। यदि दुःख होता तो सभी को होना चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवानक्रोध-मान-माया-लोभ होने लगें तो होने देना, कुचारित्र के विचार आएँ तो उसमें हर्ज़ नहीं है, घबराना नहीं। लेकिन उन्हें ‘यों’ प्रतिक्रमण करके पलट देना। उससे बहुत ही उच्च धर्मध्यान होगा!
परम पूज्य दादा भगवानअंतरशत्रु का जिन्होंने नाश कर दिया है, ऐसे अरिहंत को नमस्कार करता हूँ। अंतरशत्रुओं को पहचानो। क्रोध-मान-माया-लोभ, ये अंतरशत्रु हैं!
परम पूज्य दादा भगवानक्रोध-मान-माया-लोभ ऐसे होने चाहिए कि अन्य किसी के लिए दुःखदाई नहीं हों। अन्य किसी को भी दुःखदाई नहीं, खुद को ही दुःख दें। इतनी लिमिट हो, तब तक मोक्षमार्ग है।
परम पूज्य दादा भगवानये खाते हैं, ब्रश करते हैं, बाल कटवाते हैं, क्या यह सब अतिक्रमण है? नहीं, ऐसा नहीं है। क्रोध-मान-माया-लोभ, वे अतिक्रमण हैं। प्रतिक्रमण किया तो वे सभी चले जाएँगे।
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