पैसों के पीछे ही पडे हैं कि कहाँ से पैसे लाएँ? कहाँ से पैसे लाएँ? अरे! स्मशान में क्यों पैसे खोज रहे हो? यह संसार तो स्मशान जैसा हो गया है। प्रेम जैसा कुछ दिखाई ही नहीं देता। जिस तरह से पैसे आनेवाले हैं, वह कुदरती रास्ता है। ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स’ है। उसके पीछे पडऩे की हमें क्या जरूरत? वही हमें मुक्त करे तो बहुत अच्छा है न बाप!
परम पूज्य दादा भगवानभगवान का नाम कब याद आएगा? जब हमें उनकी ओर से कुछ लाभ हो, और उन पर प्रेम आए तब।
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