भगवान ने कहा है कि, ‘आत्मज्ञान समझो।’ ‘आत्मज्ञान’ और ‘केवलज्ञान’ में बहुत ज़्यादा अंतर है ही नहीं। यदि ‘आत्मज्ञान’ को समझ लिया तो वह ‘कारण केवलज्ञान’ है और ‘केवलज्ञान’, ‘कार्य केवलज्ञान’ है!
परम पूज्य दादा भगवानआत्मा अरूपी है। इन आँखों से जो दिखाई देता है, वह सब तो भ्रांति है। यथार्थ तो ‘दिव्यचक्षु’ से दिखाई देता है कि, ‘ये भगवान हैं और ये भगवान नहीं हैं।’ दोनों भाग अलग दिखाई देते हैं। भगवान अमूर्त हैं। अत: आँखों से, रूपी चीज़ों द्वारा वे नहीं देखे जा सकते। भगवान, अरूपी ज्ञान से समझे जा सकते हैं, चारित्र से पहचाने जाते हैं।
परम पूज्य दादा भगवानवास्तव में भगवान ने विराधना किसे कहा है? जो ‘ज्ञान’ की विराधना करेगा, वह विराधक कहा जाएगा। अज्ञान की विराधना करने वाला आराधक कहा जाएगा।
परम पूज्य दादा भगवानअंतिम समय आने पर कहेगा, ‘अब ज्ञानी आएँ और मुझे दर्शन हो जाएँ, दो घंटे का आयुष्य बढ़ा देना मेरा, हे भगवान!’ ऐसे याचना करता है। अब याचना मत कर। अब क्यों गिड़गिड़ा रहा है? जब सत्ता थी तब इस्तेमाल नहीं की। अब सत्ता नहीं है तो माँग रहा है!
परम पूज्य दादा भगवानअंतरशत्रु का जिन्होंने नाश कर दिया है, ऐसे अरिहंत को नमस्कार करता हूँ। अंतरशत्रुओं को पहचानो। क्रोध-मान-माया-लोभ, ये अंतरशत्रु हैं!
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