‘वीतराग’ को दान लेने या देने का मोह नहीं होता। वे तो ‘शुद्ध उपयोगी’ होते हैं।
परम पूज्य दादा भगवान
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जब तक ‘ज्ञानी पुरुष’ शुद्ध नहीं कर देते, तब तक शुद्ध कैसे हो पाएगा? ‘ज्ञानी पुरुष’ शुद्ध कर दें, उसके बाद आपको ‘शुद्ध उपयोग’ उत्पन्न होगा, तब शुद्ध कहलाएँगे।